चढ़ता सूरज, भरी दुपहरी, मेज़ पे बैठा मैं और एक भारी भरकम किताब
न जाने कब आँख लग गई, शायद दिमाग ने घुटने टेक दिए
और फिर किताब से दूर एक सुहाना सपन 11
1.. दरिया किनारे खुली तेज़ हवा में, बालों को सहलाती ऊँगली
यारों से मस्ती में हाथ मिलाती ऊँगली
कभी खेत खलिहानों में नई फसल को छूती तो कभी बाग़ के फूलों की खूबसूरती निहारती ऊँगली
जवानी के जोश में आ गाड़ी को तेज़ भागती ऊँगली
कभी नाव में बैठ लहरों पर , ठंडे पानी का लुत्फ़ उठती ऊँगली
आम सेब अंगूर पेड़ पर चढ़ कर तोड़ती उनका रस लेती ऊँगली
2 ...बल्ले के हंडल को पकड़, या गेंद को फिरकी देकर मजे करती यह ऊँगली
फुटबाल के लिए तैयार, फीते कसती यह ऊँगली
कभी शतरंज की मोहरों को , कभी मंझा घोटती पतंग को इशारों पर नाचती उंगली
लकड़ी छील कर गुल्ली डंडा बनती ये ऊँगली
3.... "अरे लड़ते क्यों हो, रुक जाओ, दो तलवारों के बीच यह ऊँगली
कभी दुआ मांगती, कभी प्रणाम करती, कभ सीने से लग विधाता को याद करती यह ऊँगली
कहते हैं, कलम में तलवार से ज़्यादा ताक़त है, अंगारे भरे छंद लिखती यह ऊँगली
हिम्मत करके अन्याय के विरुद्ध उठती यह ऊँगली
४..... नौकरी लग चुकी, काम का टेंशन सर पकड़ती सर दबाती या कभी बाल नोचती ये ऊँगली
दुकान में बैठ कर दिन रात नोटों की जुगत लगाती ऊँगली ॥
ट्रेनों या बसों में लटक कर घर से दफ्तर और दफ्तर से घर चक्कर लगाती ऊँगली
काम का टेंशन घर ला ला कर , बोतलें उडेलती , शराब के ग़म में डूबती फिर बीवी बच्चों को रुलाती यह ऊँगली
सिगरेट के छल्लों में जिंदगी को धुआं करती ये मौत का इंतज़ार करती ऊँगली
क्या यही जीवन है । और क्या यूंही जीना है कार का स्टीरिंग पकड़ गहरी सोच में डूबी ऊँगली
भीख मंगाते बच्चों के हाथ पकड़ उन्हें सही रास्ता दिखलाती । भूख से बिलखते बच्चे को पीट रही दुखियारी माँ को आश्वासन देती ऊँगली ।
अरे कब तक अपना सर पकडू और कब तक अपने ही आँसू पोछूं । क्या में अकेला ही हूँ जिसे तकलीफ है
एक रोते हुए बच्चे को पुचकारती उसके आँसू पोंछ पेट में गुदगुदी कर प्यारे गलों पर हाथ फिराती नन्हे होटों पर मुस्कान लती ऊँगली । किसी वृद्ध की छड़ी की जगह ले या किसी अंधे को सड़क के पार लगाती ऊँगली
छोटे छोटे हाथ पकड़ कर अलिफ़ बे क ख ग घ सिखलाती ऊँगली
उनको समझा कर आदर्श बता कर सही जीवन जीना सिखलाती ऊँगली 5
5 ...... उफ़ यह क्या सहसा ही ट्रैफिक खुल गया , सड़क समय की रफ्तार से चलदी
शायद में ज़्यादा सो गया था । यह ऊँगली में दर्द कैसा, नीली पड़ गई है , सारा गरम उबलता जवान लहू जम गया सा लगता है
शायद मोटी किताब के तले दबी ही रह गई ऊँगली । हाँ दबी रह गई ऊँगली ।
(नि : स्वार्थ )