आज करेगी मौत कलेवा, उसके लिए तो सुबह होगी मेरी तो काली रात है. बहुत जीवन जिया है दुनिया के क्या क्या रंग न देखे. इस दुनिया के लिए ये जीवन एक सारांश होगा मेरे लिए तोह वृत्तांत है. इस बड़ी दुनिया मे मेरे जैसे सैकड़ों कई सदियों मे आए और गए. मेरा जीवन तो इस विशाल बिसात का एक प्यादा मात्र भी नही है. पर जीवन मेरे लिए तो बड़ा ही है. पर ठिठक कर रह जाता हूँ, शायद ग़लत है, एक बार फिर सोच लूँ!!!!
आज मरण शैया पर पड़ा हूँ, ऊपर मौत की काली चादर, कल सफ़ेद कफ़न होगा, जिसके रंग का मुझे कल आभास भी न होगा. पर यह क्या!!! यह काली चादर इतनी रंगीन कैसे, एक बाई स्कोप सी दिखती है, जीवन का एक एक जिया हुआ पल सजीव होकर दिखता है.....
पापा कहते है बड़ा नाम करेगा........
बाबूजी को ही सबसे ज़्यादा उम्मीदें रहती है, औरों को भी होगी, पर बाबूजी की ही मायने रखती है. माँ तो बहुत सरल हैं, कहती है, पैसे कमाने से अधिक महत्व का है के जीवन को ऊंचा रखो और सत्यवान बनाओ. भाई भी है बहन भी. है रे बचपन कितना अच्छा था सब बड़े होकर अलग हो जाते है, नासपीति जवानी, बुढ़ापे मे कमसकम कोई ध्यान तो रखता था!!!!!
अरे ठहरो भी अभी कैसे चला जाऊं, बंद करो यह रोना धोना. अभी कितने काम बाकी है. इतनी जल्दी क्यों चला जाऊं, बहुत सी जिम्मेदारियां हैं और इतना छोटा सा जीवन, अभी तो बहुत काम है.
कितना सोचा था देश के लिए और समाज के लिए कुछ तो कर के जाऊंगा, मेरे अपने लोग, आख़िर शास्त्र भी तो यही कहते हैं की दुनिया से हमेशा लिया कुछ दो तो भाई!!!
पर पहले जीवन बनाने मे, फिर पैसे की जोड़ तोड़ मे लगा रह गया.
अभी भी दम बाकी है फिर बिना लड़े कैसे चला जाऊं, बिना संघर्ष, बड़ा अन्याय है.
आज मन फिर से पैदा होकर बालक सा हुआ जाता है. यमराज के सामने वैसे ही कान पकड़ कर खड़ा है मानलो बाबूजी के सामने गलती कुबूल कर रहा हो. मानो कह रहा हो
प्रभु अबकी जाने दो, फिर गलती करू तो कोड़े मार कर प्राण हर लेना. कमबख्त देव हैं, रिश्वत भी न लेंगे. अगर दी भी तो न जाने कितना मांग ले. कहाँ से लाकर दूंगा. अरे कहीँ से भी लाऊँ अभी तो बकश दो!! फिर रिश्वत पहुँचाई तो थी डॉक्टर के ज़रिये, पर रिश्वत ही थी ज़मानत न थी. डाक्टर हमे रोके रहने की ही तो रिश्वत लेते हैं न. सारा माल यम् के पास ही होगा और जाएगा कहाँ. कहे दूंगा पहले मेरे पैसे वापस करो अगर ले ही जाना है तो.
जीवन भी जलाता है, पर मौत आए तो प्रिय हो जाता है. सब तकलीफें झेले तब कहता है ऊपर वाले उठा ले. पर मौत सामने है तो फिर जलने को तैयार. हालत उस पतंगे सी है जो बार बार जलता है पर आग के ही इर्द गिर्द रहना चाहता है, पर क्या करे है. मैं भी अभी जीना चाहता हूँ अभी भी दम बाकी है.
हे ऊपर वाले कैसा अन्याय है एक बालक से उसका सबसे प्रिय खिलौना छिना जा रहा है. हाय उससे भी ज़्यादा तकलीफ हो रही है. अरे ठहरो न महाराज फिर लेते जाना सब को आजाने दो, सब से मिल तो लूँ. और न जाने नई जगह कैसी हो. हाँ हर ट्रान्सफर के पहले यही तो बातें हुआ करती थी.
आज तो रुकने मे समूची शक्ति लगा दी है, पर यमराज तो हाथ पैर जोड़ने पर भी नही मानते. नही मानते तो हो जायें दो दो हाथ, एक और द्वंद्व सही, ज़िन्दगी भर लड़ने की तो प्रक्टिस की है. पर यह क्या इतनी ताकत कभी नही लगी, जीवन भर इतना भार उठाया, पर आज न जाने कौन सा पहाड़ उठा रहा हूँ. पसीना निकल गया इतना संघर्ष तो कभी नही किया. यह क्या फिर वही चित्र वही बाई स्कोप, और पानी पानी हुआ जा रहा हूँ आज पिघल कर देह बह जायेगी लगता है.
सारा बदन अकड़ रहा है इतनी शक्ति तो कभी नही लगी फिर वाही जीवन का बाई स्कोप, इतनी जल्दी सब कुछ दिख रहा है अब तो जीवन सारांश सा लगता है, आह अभी नही लेजाने दूंगा, और जीना है
हिच्च एक आखरी हिचकी, सारी शक्ति सारा सामर्थ्य सरे स्वपन सारा प्रयत्न एक ही झटके मे खत्म.
सत्य है यह जीवन एक वृत्तांत एक सारांश.
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1 comment:
मुझसे पेहले कितने शायर आये और आ के चले गये .....
कल चक्र तो अनवरत चलता रहा है, चलता रहेगा . परन्तु इसी परिधी मे रेह कर इससे निकलने कि पराकाशठा करना ही जीवन का वृत्तांत है सारांश है .
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