के मैं अपनी ज़िन्दगी से परेशां हूँ या मेरी ज़िन्दगी मुझ से
क्या गुज़रा और क्या कर गुज़रे .. अपनी ही ग़लती थी
बिना नब्ज़ पर हाथ रखे ज़िन्दगी से पल पल का हिसाब माँगा
ज़िन्दगी की धुप से रूह ख़ाक हो जाती है, ईमान झुलस जाते हैं
लहू और पसीना सूखा जाता है, फिर अरमान क्या चीज़ हैं जी
अरमान तो धुवां होने ही थे .. अपनी ही ग़लती थी
ख़्वाब भी भला कभी हक़ीकत होते हैं .. हमने ज़िन्दगी से एक सच्चा ख़्वाब माँगा
टेढ़ी मेढ़ी दुनिया में ये सीधी सपाट ज़िन्दगी ... जद्दोजहत इतनी के दम निकलने पर भी दम न मिले
.. अपनी ही ग़लती थी .. ज़िन्दगी भी तो ख़ाली ही हाथ है ...
हमने ज़िन्दगी से दम न माँगा .. रंग औ बू औ रुबाब माँगा
2 comments:
Man.. this is a perfect expression of turning 30.. and believe me.. it strikes a cord with me
Man.. this is a perfect expression of turning 30.. and believe me.. it strikes a cord with me
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